कैदियों के लिए समानता और लैंगिक संवेदनशीलता: न्यायिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण
DOI:
https://doi.org/10.8224/journaloi.v74i3.969Keywords:
कैदियों के अधिकार, समानता, जेल सुधार समितियां, मानवाधिकार, पुनर्वासAbstract
कैदियों के लिए समानता और लैंगिक संवेदनशीलता का मुद्दा भारतीय जेल प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सामाजिक-वैधानिक चुनौती है। यह शोध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, और 21 के संदर्भ में कैदियों के समान अधिकारों और गरिमा की रक्षा की कानूनी बुनियाद प्रस्तुत करता है। न्यायालयों के व्याख्यात्मक निर्णयों और मानवीय दृष्टिकोण से जेलों में कैदियों के साथ समान और संवेदनशील व्यवहार आवश्यक माना गया है, जिसमें महिला, पुरुष, और ट्रांसजेंडर कैदियों की विशिष्ट जरूरतों को समझना शामिल है। मातृत्व, स्वच्छता और सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दे विशेष ध्यान के पात्र हैं। प्रशासनिक स्तर पर जेल सुधार समितियों की अनुशंसाएं, राष्ट्रीय जेल नीति और राज्य स्तरीय सुधार पहलें जेलों के मानवीयकरण और पुनर्वास पर केंद्रित हैं। प्रशिक्षण, स्टाफ की संवेदनशीलता, और प्रभावी निगरानी तंत्र की भूमिका जेलों में मानवाधिकार संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र के नेल्सन मंडेला नियम और बैंकॉक नियमों के अनुरूप भारत सुधार प्रयास कर रहा है, परंतु भीड़भाड़, संसाधनों की कमी, भेदभाव और प्रशासनिक जवाबदेही की कमजोरी जैसी व्यावहारिक चुनौतियां मौजूद हैं। गृह मंत्रालय, न्यायपालिका और जेल प्रशासन के बीच समन्वय नीति निर्माण और क्रियान्वयन को प्रभावी बनाता है। पुनर्वास में शिक्षा और मनोवैज्ञानिक सहायता कैदियों के सफल सामाजिक समावेशन के लिए अनिवार्य हैं। निष्कर्ष में, न्याय, समानता और मानवाधिकारों के संतुलित दृष्टिकोण के तहत भारत के कारागार सुधार में न्यायपालिका की सक्रियता और प्रशासनिक जिम्मेदारी दोनों की अहमियत स्पष्ट होती है। इस संयुक्त प्रयास से जेल व्यवस्था सुधारात्मक, संवेदनशील और मानवधिकारों के अनुरूप बनाए जाने में मदद मिलेगी।



